Tuesday, August 9, 2011

गुलाबी रेशम

हसन के वालिद बीमार थे. कई दिनों से अस्पताल में भर्ती. चुनांचे हसन खुद को उनके अस्पताली बिस्तर के पास पाता, हालांकि उसे वहां जाना कतई पसंद नहीं था. अस्पताल उसे मनहूस लगते, बीमारी और गिलाज़त से भरे. हर तरफ आहें, कराहें और लाचारी. बाप की फ़िक्र क्या उससे हमदर्दी भी नहीं थी. लेकिन बेटा होने के हवाले से उनकी तीमारदारी करना लाज़मी था. वो अकसर अपनी किताबें  वहां ले जाता और ज़िन्दगी की बीमार असलियतों के बीच अपने कुल्लियातों के सहारे शायराना नफ़ासत पैदा करने की कोशिश करता.

एक दिन उसने ज़नाना वार्ड के सामने एक बेहद खूबसूरत लड़की को खड़ा देखा. रंग बड़ा साफ़ था, आँखें बड़ी - बड़ी और होंठ अनार की कलियों की तरह सुर्ख़. उम्र अठारह के आस पास होगी. हसन को अपने होश गु होते महसूस हुए. उसे लगा जैसे वह उसी महबूब को देख रहा है जिसे उसकी शायरी की किताबों में बड़े अंदाज़ से बयान किया गया है. लड़की ने उसे अपनी ओर घूरते देखा तो बेजज़्बाती चेहरे से वार्ड के अन्दर चली गयी.

अब हसन रोज़ाना बिन बुलाये अस्पताल आने लगा. वार्ड के बाहर ही चक्कर काटा करता. धीरे धीरे उसे उस लड़की के बारे में कुछ बातें पता चली.  उसका नाम शाहिदा था. वो एक उम्रदराज़ औरत की करीबी रिश्तेदार थी शायद, उन्हीं की ख़िदमत में लगी रहती. उन्हें खाला कहती थी. हर शाम उन्हें व्हीलचेयर पर बैठा कर अस्पताल के बाग़ में ले जाती और दोनों काफी देर तक शुगल लगाते. हसन अकसर झाड़ियों की ओट में छिप कर उनकी बातें सुनता. बातें कुछ ख़ास ना होतीं, वही आम औरतों वाली. घर - बाहर की, लाहौर के बाज़ारों की और दूसरी ख़वातीनों की. लेकिन उनकी गुफ़्तगू से हसन को ये बात पता चली की कोई शेखू उन दोनों का बड़ा अज़ीज़ है. हर दिन उसका ज़िक्र होता. मालूम होता था कि शाहिदा को शेखू बड़ा प्यारा है और उसे हमेशा उसकी फ़िक्र लगी रहती है. मसलन, उसने खाना खाया होगा क्या, क्या घर की बाक़ी औरतें उसका ख्याल रखती होंगी, उसे मुझसे बातें करने का बेतहाशा शौक है, कहीं ऊब ना गया हो मेरी गैरहाजिरी में.

हसन का खून खौल उठता. जलन के मारे उसकी नींदें उड़ जाती. रात दिन यही सोचता रहता कि आखिर ये शेखू है कौन, और शाहिदा को वो इतना प्यारा क्यों है. लड़की  तो कँवारी ही मालूम होती थी. वह अभी तक उससे बात करने की हिम्मत जुटा नहीं पाया था. इतना तो तय था कि शाहिदा जान चुकी थी कि उसे देखने के लिए ही जनाब ज़नाना वार्ड के सामने चक्कर लगाया करते थे. मगर तब भी उसकी सूरत और अंदाज़ में  किसी किस्म की ख़ुशी, झिझक या कोफ़्त का निशाँ नहीं था. हसन उसकी पुर असरार निगाहों में कोई जज़्बा, कोई रद ए अमल ढूँढने की कोशिश करता, मगर अपने आपको नाकामयाब पाता. उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी. मुहब्बत का इज़हार और शेखू का खुलासा दोनों होना ज़रूरी हो गया था.

एक दिन ऊपरवाले ने उसकी सुन ली. उस रात उन्हींके खानदान से कोई ख़ातून शेखू को दोनों से मिलाने के लिए लाने वाली थी. टेलीफ़ोन पर बात हुई थी. फिर वही ख़ातून खाला के पास रहने वाली थी और शाहिदा वापस अपने घर जाने वाली थी. यही मौका था. हसन बड़ी शिद्दत से उनका इंतज़ार करने लगा. सोच रहा था जब शाहिदा अकेले घर लौट रही होगी तभी अपना हाल ए दिल बयान कर देगा. लेकिन सबसे पहले उसे उस कम्बख्त  शेखू को देखने की चाह थी.

फैसले के मुताबिक रात को एक औरत दोनों से मिलने आई. वो अकेली थी लेकिन हाथ में एक बड़ी सी टोकरी नुमा चीज़ थी जो खूबसूरत गुलाबी रेशम के गिलाफ़ में थी. हसन को ये सब बड़ा अजीब लगा. बहरहाल, कुछ देर बाद शाहिदा उस टोकरी के साथ वार्ड के बाहर आई और अस्पताल के बाहर जाने लगी. राह में उसने बुर्के से चेहरे का पर्दा किया. हसन लगातार उसका पीछा कर रहा था. शाहिदा ने एक तांगेवाले को आवाज़ लगायी और उस पर टोकरी के साथ सवार हो गयी. तांगेवाले ने पूछा, "कहाँ जाओगी बीबी?"

अचानक हवा का एक झोंका आया और शाहिदा और टोकरी दोनों को बेपर्दा कर गया. हसन ने देखा कि गुलाबी रेशम के तले एक पिंजरा था जिसमे एक तोता बड़े इत्मीनान से बैठा था. शाहिदा ने तांगेवाले से कहा, "हीरा मंडी".




In dedication to Sa'adat Hasan Manto. 

3 comments:

  1. :) Do you wish you were Danish? ;)

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  2. :) I maintain. I wish I was born 450 years ago.

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  3. Although right now I wish you would ask me about the ends in the story that I did not tend to. So I will do it on my own.

    Sa'adat Hasan Manto wrote simple short stories with tremendous depth. Always cliff ended, most involve (like classical Persian and Urdu poetry) a young boy and an adolescent, beautiful girl. He was reknowned for his fondness for local tawayafs, and his stories often reflect their stories, sometimes involving explicit content.
    Heera Mandi is worth googling. It is a famous red light area in Lahore, where Manto spent the later years of his life.

    As can be expected, women in Heera Mandi seldom have friends, male or female. Almost all these women have pet dogs, cats or parrots to fill this void.

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